कजाखस्तान के कलाची गांव के लोग एक अजीब बीमारी से पीड़ित हैं। वे दिन के किसी भी समय सो जाते हैं और कई दिनों तक बेहोश रहते हैं।
कलाची कजाकिस्तान के अकमोला क्षेत्र के एसिल जिले में स्थित एक गांव है। लगभग एक चौथाई ग्रामीण कम से कम एक बार नींद की बीमारी से पीड़ित हो चुके हैं। इस रहस्यमय बीमारी का पहला मामला मार्च 2013 में सामने आया था।
इसके लक्षणों में थकान, उनींदापन, समन्वय की कमी, सिरदर्द और आंशिक रूप से याददाश्त का नुकसान शामिल है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। उम्र, लिंग, प्रजाति और स्वास्थ्य की स्थिति कोई मायने नहीं रखती।
यह बीमारी कभी भी हो सकती है। व्यक्ति सड़क पर चलते समय, खाते समय या बात करते समय सो सकता है और वह कई दिनों तक सो सकता है। जब व्यक्ति जागता है तो उसे चक्कर और उलझन महसूस होती है।
यहां तक कि जानवर भी इससे प्रभावित होते हैं। कभी-कभी जानवर भी जागने के बाद अचानक अति सक्रियता दिखाते हैं।
कुछ लोग पूरी तरह से सो नहीं पाते, लेकिन नशे में दिखते हैं। वे भ्रमित दिखते हैं और खड़े होने में असमर्थ होते हैं। प्रभावित लोगों में से कुछ को स्पष्ट मतिभ्रम होता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि नींद की बीमारी बढ़ती जा रही है। एक मामला ऐसा भी है जब स्कूल में एक घंटे के अंदर आठ बच्चे सो गए। एक बार तो एक ही दिन में इस बीमारी से पीड़ित 60 मरीज पाए गए थे।
कई वैज्ञानिक, डॉक्टर, वायरोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट और टॉक्सिकोलॉजिस्ट इसका कारण जानने के लिए कलाची का दौरा कर चुके हैं। मेनिनजाइटिस जैसे वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण की संभावना को खारिज कर दिया गया है।
यहां तक कि मिट्टी और पानी में भी ऐसे रसायनों की मौजूदगी नहीं दिखती जो बीमारी का कारण बन सकते हैं। कुछ डॉक्टरों ने बताया कि मरीज़ एन्सेफेलोपैथी से पीड़ित हैं, जो मस्तिष्क का एक विकार या बीमारी है।
मस्तिष्क के स्कैन से पता चला है कि अत्यधिक तरल पदार्थ की मौजूदगी है जिसे एडिमा के नाम से जाना जाता है। मस्तिष्क की इस बीमारी की उत्पत्ति अभी भी स्पष्ट नहीं है।
कलाची के निवासी बीमारी के लिए सोवियत काल की बंद पड़ी यूरेनियम खदान से आने वाली हवा को जिम्मेदार ठहराते हैं। गांव के बगल में स्थित यह क्रास्नोगोर्स्की खदान कभी यूरेनियम निकालने के लिए इस्तेमाल की जाती थी।
1990 के दशक में खदान बंद कर दी गई थी। परीक्षणों से पता चला कि गांव और खदान के सबसे नज़दीकी स्थान पर विकिरण का स्तर पृष्ठभूमि स्तर के समान था। खदान में काम करने वाले खनिक भी बीमारी से प्रभावित नहीं हुए।
गांव में रेडॉन का स्तर सामान्य से चार से पांच गुना अधिक पाया गया था। लेकिन डॉक्टरों का दावा है कि बढ़ा हुआ स्तर बीमारी का कारण नहीं हो सकता और बीमारी के लक्षण मेल नहीं खाते।
विकिरण को इसका कारण मानने से इंकार किया गया। कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता को भी संभावित कारण माना जा रहा है।
गांव में कार्बन मोनोऑक्साइड का उच्च स्तर चिमनी से निकलने वाले धुएं के कारण होता है, जो गांव के स्थान और वहां के मौसम के कारण ऊपर जाने के बजाय नीचे चला जाता है।
कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता के लक्षण सिरदर्द, उल्टी और चक्कर आना हैं। हालांकि कुछ लक्षण समान हैं, लेकिन कई दिनों तक नींद में रहने का कारण पता नहीं चल पाया है।
कलाची के ग्रामीणों में 'निद्रा रोग' का रहस्य अभी भी नहीं सुलझ पाया है और निवासियों को अन्यत्र बसने के लिए कहा गया है।