एडम रेनर का जन्म 1899 में ऑस्ट्रिया के ग्राज़ में एक औसत कद के जोड़े के घर हुआ था। जब 1914 में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा, तो एडम को सेना में भर्ती होने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि वह अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटा और कमज़ोर था।
वह केवल 4 फीट 6 इंच लंबा था। एक साल बाद उसने फिर से कोशिश की, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि उसकी लंबाई केवल 2 इंच बढ़ी थी। उन्नीस साल की उम्र में, एडम की लंबाई 4 फीट 8 इंच थी।
वह सामान्य ऊंचाई से 2 इंच छोटा था और उसे बौना माना जाता था। हालाँकि एडम छोटा था, लेकिन उसके हाथ अपेक्षाकृत लंबे और पैर बड़े थे।
21 साल की उम्र से ही एडम के लिए सबकुछ बदलने लगा। जीवन के इस पड़ाव पर जब लोग बढ़ना बंद कर देते हैं, एडम ने खतरनाक गति से बढ़ना शुरू कर दिया। एक दशक में वह 4 फीट 10 इंच से 7 फीट 1 इंच तक बढ़ गया।
बीस की उम्र में औसत से कम ऊंचाई वाला एक आदमी अब इतिहास के सबसे लंबे आदमी के करीब पहुंच गया था, सिर्फ़ एक फीट और 2 इंच छोटा। लेकिन दुखद बात यह थी कि उसी समय एडम की रीढ़ की हड्डी में गंभीर टेढ़ापन आ गया था।
ऐसा क्यों हुआ?
एडम पर व्यापक शोध किया गया। 1930-1931 के दौरान डॉक्टरों ने पाया कि एडम एक्रोमेगाली नामक बीमारी से पीड़ित था।
यह उसकी पिट्यूटरी ग्रंथि पर एक ट्यूमर के कारण हुआ था, जिसके कारण उसके शरीर में वृद्धि हार्मोन का अधिक उत्पादन हुआ था। यही उसके अजीब दिखने के पीछे का कारण था। रेनर के हाथ और पैर बड़े थे। उसका माथा और जबड़ा भी बाहर निकला हुआ था, साथ ही मोटे होंठ भी थे और दांत काफी दूर-दूर थे।
डॉक्टरों ने रेनर की पिट्यूटरी ग्रंथि का ऑपरेशन किया और ट्यूमर को हटा दिया। सर्जरी आंशिक रूप से सफल रही, रेनर अभी भी बढ़ रहा था लेकिन धीमी गति से। अपने शेष जीवन में एडम का विकास जारी रहा और उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
वह अपनी दाहिनी आंख से अंधा हो गया और उसके बाएं कान से सुनने की शक्ति चली गई। उसकी रीढ़ की हड्डी की वक्रता बढ़ने के कारण उसे बिस्तर पर रहना पड़ा।
रेनर का निधन 51 वर्ष की आयु में 7'10" की ऊंचाई पर हुआ। वह मानव इतिहास में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो एक ही जीवनकाल में खुद को बौना और विशालकाय कह पाए।
एडम रेनर की दुःखद कहानी चिकित्सा इतिहास में एक विचित्र मामला बनकर रह गयी है।